आजकल कोई ग़म नहीं है, भई!
ये ही सबसे बड़ी खुशी है, भई!मौत से पहले ज़िंदग़ी ही तो थी?
फिर इसके बाद भी वही है, भई!
बेझिझक पाँव पसारे जायें,
दिल की चादर बहुत बड़ी है, भई!
माँगने का शऊर भी न रहा,
ऐसी गैरत गले पड़ी है, भई!
उसके एहसान याद कर करके,
नज़र झुकी तो फिर झुकी है, भई!
कौन है हमसे खुशनसीब भला?
उसकी संगत हमें मिली है, भई!
मातमपुरसी बहुत हुई है, भई!
फिर भी क्यों आँख शबनमी है, भई!
आशुतोष द्विवेदी
14-06-2025
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