Friday, June 11, 2021

ग़ज़ल ११ जून २०२१

 बातें इस तरह भी खराब न हो जाएं कहीं,

ये जो आँसू हैं फिर शराब न हो जाएं कहीं !

गलतियाँ करते हो तो गिनतियाँ भी करते रहो,

बढ़ते-बढ़ते ये बेहिसाब न हो जाएं कहीं !

बड़ी जतन से हकीकत किये हैं जो लम्हे,

डर यही है कि फिर से ख्वाब न हो जाएं कहीं !

दिल में लहरें जो उठीं हैं उन्हें सँभाल भी लो,

मनचलेपन में ये सैलाब न हो जाएं कहीं !

ज़रा सी उलझनें जंजाल बन गईं अक्सर,

ये सितारे भी आफताब न हो जाएं कहीं !

वो मेरे दर्द की देहरी को लाँघना चाहे,

कोशिशें उसकी कामयाब न हो जाएं कहीं !

छोटे बच्चे हैं, इन्हें मज़हबी फितूर न दो,

बड़े होते ही ये कसाब न हो जाएं कहीं !

भागे फिरते हैं खुशबुओं के सताए हुए हम,

ये चंद शेर भी गुलाब न हो जाएं कहीं !

-- आशुतोष द्विवेदी 

Thursday, January 28, 2021

ढोते ही रहते हैं संबंधों को

 ढोते ही रहते हैं संबंधों को,

आदत सी पड़ी हुई है कंधों को ।


गिर गिर कर सौ सौ बार उठे होंगे !

फिर फिर अपनों के हाथ लुटे होंगे !

ऊपर ऊपर झूठी मुसकान लिए,

भीतर भीतर हर साँस घुटे होंगे !

पर छिप न सकी भावों की लाचारी,

चेहरे पर झलकी मन की बीमारी;

फिर भी जाने कैसे हैं ये अपने?

दुख दिखा न आँखों वाले अंधों को ।१


जब जब संवेदन का तूफान बढा़,

बहला फुसला कर मन को किया कड़ा;

अपनेपन का दायित्व निभाने में,

अपने को चौराहों पर किया खड़ा ।

दुविधाओं से टकराते लहर लहर,

डूबते रहे उतराते रहे मगर;

फिर भी जाने क्यों बूझ नहीं पाए,

भावुकता के इन गोरख धंधों को ? २


नेकी करके दरिया में डाल दिया,

अपने अगणित सपनों को मार दिया;

उनको यह साधारण सी बात लगी,

जिन पर अपनी साँसों को वार दिया ।

खुद से ही रूठे, खुद से ही माने,

आया न कभी कोई जी बहलाने ;

फिर भी जाने किस लिए निभाते हैं

जीवन के अनचाहे अनुबंधों को ? ३