Monday, May 18, 2020

कैसे हो?

हमारी ओर भला उनकी नज़र कैसे हो?
कोई बता दे, सदाओं में असर कैसे हो?

किसी हँसी, किसी खनक, किसी दमक से है घर,
सिर्फ दीवार-ओ-दर के घेर में घर कैसे हो?

लोग कहते हैं कि दिल पर नहीं लेना कुछ भी,
सरापा दिल ही हैं जो, उनकी गुजर कैसे हो?

किसी की आस में भटकी हैं उम्र भर नज़रें,
वो न मिल जाए जब तलक तो बसर कैसे हो?

जहाज़, रेल, कर, बस के खबरनामों में,
हताश पाँव के छालों की खबर कैसे हो?

अपनी पहचान कहीं और ढूँढने वालों,
उधर है दिल तो वफ़ादारी इधर कैसे हो?

हुज़ूर, प्यास को पानी की फ़क़त है दरकार,
गला गरीब का जुमलों से ही तर कैसे हो?

जहाँ 'चमचागिरी' को 'कर्ट्सी' कहा जाए,
ऐसे माहौल में भाषा की फिकर कैसे हो?

देस मुर्दों का, यहाँ ज़िन्दगी बग़ावत है,
इलाज़ कुछ तो किया जाय, मगर कैसे हो?

Friday, May 15, 2020

गिनते थे

जिन्हें सारे सयाने लोग मँझधारों में गिनते थे,
उन्हें नादान हम कश्ती की पतवारों में गिनते थे।

कई लोगों के सच इस दौर में खुलकर उभर आये,
जिन्हें हम एक ज़माने से समझदारों में गिनते थे।

जिन्होंने हम पे' बदनामी के पत्थर जम के बरसाए,
वो सब के सब वही थे, हम जिन्हें यारों में गिनते थे।

उन्हें ग़द्दारियों की बाअदब तालीम हासिल थी,
जिन्हें हम अपनी बस्ती के वफ़ादारों में गिनते थे।

कला, साहित्य और संगीत के काफी बड़े चेहरे,
बिके थे ज़्यादातर, हम जिनको फ़नकारों में गिनते थे।

कई सालों से कर के नौकरी औकात पर आए,
कोई था दौर, जब हम खुद को खुद्दारों में गिनते थे।