Tuesday, January 14, 2020

जो कागज़ नहीं दिखाएंगे.....


उनको संबोधित एक कविता, जो आजकल ज़ोर-शोर से गा रहे हैं - "हम कागज़ नहीं दिखाएंगे...." :-

जब रामलला की जन्मभूमि पर मंदिर का मुद्दा आया,
है याद तुम्हें किस बेशर्मी से तुमने कागज़ माँगा था?
तुमको खुश करने की खातिर ट्रक-भर कागज़ बर्बाद गए,
सत्तर सालों तक रामलला को कोर्टरूम में टाँगा था |
अब तुमसे कागज़ माँग लिए तो क्यों इतनी बेचैनी है?
जो सच है, उसे कहो, क्यों झूठी भावुकता फैलाते हो?
'हम कागज़ नहीं दिखाएंगे, हम कागज़ नहीं दिखाएंगे'
बच्चों वाली अपनी जिद को तुम क्रांति-गीत सा गाते हो !
सबको अपनाता है भारत, सबको दुलराता है भारत,
फिर भी भारत है एक राष्ट्र, यह खुली सराय नहीं कोई |
अपने नागरिकों के सारे अधिकार सुनिश्चित करने का,
कागज़ देखे जाने से हटकर और उपाय नहीं कोई |
यह संविधान, गीता-कुरान, सदग्रंथ-ज्ञान, धन का विधान,
वेतन-पेंशन, शादी-तलाक, सब कुछ कागज़ के अन्दर है;
पैदा होने से लेकर के अंतिम यात्रा पर जाने तक,
हर एक मोड़ पर जीवन के बस कागज़ का ही चक्कर है |
माना सच्ची भावुकता कागज़ की मोहताज़ नहीं होती,
पर शासन की मजबूरी है, वह कागज़ से पहचान करे |
ऐसे में, देश-भक्त है जो, वह पहले कागज़ दिखलाए,
घुसपैठ पकड़ पाने में यूँ शासन का काम आसान करे |
उनको भी जाकर समझाए जिनको कागज़ की समझ नहीं,
किस-किस कागज़ से काम चलेगा, यह सब उनको बतलाए |
हाँ, देश-प्रेम की आड़ लिए जो अपने हित को साध रहा,
उससे यह नम्र निवेदन है, वह खुलकर सम्मुख आ जाए |
इसलिए कि हठ-धर्मी होकर जो ऐसे गाने गाएंगे -
'हम कागज़ नहीं दिखाएंगे, हम कागज़ नहीं दिखाएंगे',
उन सबको ध्यान रहे इतना यह बीस-बीस का भारत है,
वे ढंग से कूटे जाएंगे, दौड़ाकर सूते जाएंगे |