Wednesday, October 28, 2020


 ये राहों में बिखरी हुई पत्तियाँ,
ये शाखों से बिछड़ी हुई पत्तियाँ;
हमारी-तुम्हारी कथाएं हैं ये,
जगत की गहनतम व्यथाएं हैं ये,
विधाता की विधि-वर्जनाएं हैं ये,
हठी मृत्यु की गर्जनाएं हैं ये;
ये बिरहा में सूखी हुई पत्तियाँ,
ये पीड़ा से पीली हुई पत्तियां;
प्रणय की करुण गीतिकाएं हैं ये,
विखंडित ह्रदय की कलाएं हैं ये,
अधूरी रही कामनाएं हैं ये,
विवश चित्त की भावनाएं हैं ये;
ये मुरझाई, अकड़ी हुई पत्तियाँ,
ये बेठौर उड़ती हुई पत्तियाँ;
नियति की नियत क्रूरताएं हैं ये,
अचेतन हुईं चेतनाएं हैं ये,
विरति-भाव की प्रेरणाएं हैं ये,
समय की सहज देशनाएं हैं ये;
ये पेड़ों से गिरती हुई पत्तियाँ,
ये मिट्टी में मिलती हुई पत्तियाँ.......
-- आशुतोष द्विवेदी



No comments:

Post a Comment