Wednesday, September 10, 2025

ग़ज़ल

मुस्कुराती हुई कहानियाॅं लिखी जाएं
इस बहाने से चंद सिसकियाॅं लिखी जाएं

भूली बिसरी हुई यादों का ज़िक्र हो फिर से

फिर से घबराई हुई हिचकियाॅं लिखी जाएं

अब क्या तारीख पर बहस का यही है हासिल?
अपने पुरखों के नाम गालियाॅं लिखी जाएं?

अक्ल थक हार के बिखरी है दिल के पन्ने पर
क्यों न इस लम्हे में नादानियाॅं लिखी जाएं!

जबकि नज़दीकियों की नज़्म नागवार रही
अबकि ग़ज़लों में फिर से दूरियाॅं लिखी जाएं

नाज़-नखरों के तरानों से भर चुका है जी
सीधी-सादी सी चंद लड़कियाॅं लिखी जाएं

साइंस पढ़-पढ़ के तो मुरझाए फूल से बच्चे
कोर्स में इनके ज़रा तितलियाॅं लिखी जाएं

अपनी तारीफ की जब कॉपियाॅं लिखी जाएं
हाशिए में ही सही गलतियाॅं लिखी जाएं

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