Friday, June 11, 2021

ग़ज़ल ११ जून २०२१

 बातें इस तरह भी खराब न हो जाएं कहीं,

ये जो आँसू हैं फिर शराब न हो जाएं कहीं !

गलतियाँ करते हो तो गिनतियाँ भी करते रहो,

बढ़ते-बढ़ते ये बेहिसाब न हो जाएं कहीं !

बड़ी जतन से हकीकत किये हैं जो लम्हे,

डर यही है कि फिर से ख्वाब न हो जाएं कहीं !

दिल में लहरें जो उठीं हैं उन्हें सँभाल भी लो,

मनचलेपन में ये सैलाब न हो जाएं कहीं !

ज़रा सी उलझनें जंजाल बन गईं अक्सर,

ये सितारे भी आफताब न हो जाएं कहीं !

वो मेरे दर्द की देहरी को लाँघना चाहे,

कोशिशें उसकी कामयाब न हो जाएं कहीं !

छोटे बच्चे हैं, इन्हें मज़हबी फितूर न दो,

बड़े होते ही ये कसाब न हो जाएं कहीं !

भागे फिरते हैं खुशबुओं के सताए हुए हम,

ये चंद शेर भी गुलाब न हो जाएं कहीं !

-- आशुतोष द्विवेदी 

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