हर साँस में लिपटी हुई यादों के सहारे,
जिंदा हैं किसी से किए वादों के सहारे।
गहराइयों का ज्ञान, न धाराओं की समझ,
हम तैर गए सिर्फ इरादों के सहारे ।
हासिल तो है मुश्किल मगर उम्मीद बहुत है,
रिश्ते निभा रहे हैं तकादों के सहारे।
सूखे में सारी उम्र गुजारा किया है दिल,
दो पल के तेरे सावन-ओ-भादों के सहारे।
घोड़े, वज़ीर, हाथी तो पूरे मज़े में हैं,
और जंग लड़ी जा रही प्यादों के सहारे।
मंदिर की रौनकें हैं चाहतों के नूर से,
है मूर्तियों में जान मुरादों के सहारे।
जिंदा हैं किसी से किए वादों के सहारे।
गहराइयों का ज्ञान, न धाराओं की समझ,
हम तैर गए सिर्फ इरादों के सहारे ।
हासिल तो है मुश्किल मगर उम्मीद बहुत है,
रिश्ते निभा रहे हैं तकादों के सहारे।
सूखे में सारी उम्र गुजारा किया है दिल,
दो पल के तेरे सावन-ओ-भादों के सहारे।
घोड़े, वज़ीर, हाथी तो पूरे मज़े में हैं,
और जंग लड़ी जा रही प्यादों के सहारे।
मंदिर की रौनकें हैं चाहतों के नूर से,
है मूर्तियों में जान मुरादों के सहारे।
बहुत खूब द्विवेदी जी! क्या ज़बरदस्त रचना है। उम्मीद और संकल्प से भरी हुई। बीच में व्यवस्था पर भी तंज़ है जंग लड़ी जा रही प्यादों के सहारे।
ReplyDelete