Thursday, June 28, 2018

जीवन बेढंगा है


जीवन बेढंगा है,
अजब रंग रंगा है !

(१)
पेशे से नौकर हैं,
बनते फिलासफर हैं |
गप्पों में टाइगर हैं,
जीते डर-डर कर हैं |
मन ऐसा नकली है, पोंगा, पाखण्डी है,
बाहर तो सन्नाटा, भीतर बस दंगा है |
जीवन बेढंगा है,
अजब रंग रंगा है !

(२)
लम्बी-लम्बी छोडें,
बौने सपने जोड़ें |
कच्चे मटके फोड़ें,
फूलों से दिल तोड़ें |
हर हरक़त ऐसे है, जैसे गन्दा नाला,
बोली जो फूटे तो बातों में गंगा है |
जीवन बेढंगा है,
अजब रंग रंगा है !

 (३)
आँसू बिक जाने हैं,
आँखें दूकानें हैं |
झूठी मुसकानें हैं,
गीत, बस बहाने हैं |
मैनर्स हैं, कर्ट्सी है, फैशन, फॉर्मेलिटी है,
सच तो इनके आगे जैसे भिखमंगा है |
जीवन बेढंगा है,
अजब रंग रंगा है !

(४)
दर-देहरी प्यासे हैं,
खोखले दिलासे हैं |
हर आहट झाँसे हैं,
रूह तक रुआँसे है |
कम-ज़र्फ़ मीडिया पर निर्भर अपना हाल,
असली में खस्ता है, ख़बरों में चंगा है |
जीवन बेढंगा है,
अजब रंग रंगा है !

-- आशुतोष द्विवेदी
२८.०६.२०१८

1 comment:

  1. Dwivediji, how beautifully you have described our hollow life full of pomp and show. Even in a light mood your poetic power outshines well known poets like Rahat Indori etc.

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