Thursday, September 25, 2014

घनाक्षरी

(१)
आज आयी मेरी याद, उसे बरसों के बाद, चित्त ने कहा प्रसाद बन चढ़ने को आज |
सब सुध-बुध खोई, अब रोके नहीं कोई, अश्रु-मणियाँ पिरोयीं  माल गढ़ने को आज |
ऐसा लगता है प्यार, कस कमर तैयार, छोड़ पीछे ये संसार आगे बढ़ने को आज |
शब्दों ने मचाया शोर, बहे रस पोर-पोर, गए भाव झकझोर छंद पढने को आज |

(२)
तुम्हें सूझती ठिठोली, मेरी जान जा रही है, यूँ न खेल करो, ऐसे अंगड़ाइयाँ न लो |
कोई मर जाएगा तो क्या मिलेगा तुम्हें बोलो! बिन बात सर अपने बुराइयाँ न लो |
मेरी महफिलें छूटीं तुम्हें याद करने में, अब मुझसे ये मेरी   तनहाइयाँ न लो |
कहीं का तो प्रिये छोड़ो, चाहे जोड़ो, चाहे तोड़ो, पल में ही उम्र भर की कमाइयाँ  न लो |

(३)
क्वार की ये क्वारी-क्वारी धूप लगती है भारी, प्यारी तेरे प्यार की खुमारी नहीं जाती है |
सुबह की बेकरारी, शाम की उमंग सारी, चित्त की अटारी से उतारी नहीं जाती है |
तेरी कारी-कजरारी अँखियों की सेंधमारी, ऐसी है बिमारी कि सुधारी नहीं जाती है |
कुछ भी हो सुकुमारी, मौसम की बलिहारी, तेरी याद से हमारी यारी नहीं जाती है |

(४)
कुछ मुस्कुराहटों से, दर्द भारी आहटों से, यूँ पिरोया हुआ जिंदगी का हार ले लिया |
थोड़े फूल चुन लिए, थोड़ी रौशनी मिला ली, थोड़ा सा प्रथम प्यार का खुमार ले लिया |
कभी हलके हुए तो फिक्र अपनी भी नहीं और कभी सारी दुनिया का भार ले लिया |
छंद कहना न छूटा , लाख समय ने लूटा, शब्द कम पड़ गए तो उधार ले लिया |

                                                                                         -- आशुतोष द्विवेदी 

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