Friday, December 30, 2022

धीमी बारिश में

 हम अलग होने के बिल्कुल पहले,

धीमी बारिश में दूर तक टहले।

ज़मीन ताकते, हाथों में कस के हाथ लिए,

महकी यादों के कारवाँ दिलों में साथ लिए।

काँपते होठ, ज़ुबाँ ठहरी, थकी-हारी नज़र,

अपने हिस्से के शब्द खोजते अपने भीतर।

तरसते कान कि एक-दूजे की आवाज़ सुनें,

उदास खामुशी में लिपटा कोई राज़ सुनें।

आने वाले पलों के दर्द टटोलें, सोचा,

दूर होने के दुख में फूट के रोलें, सोचा।

ये भी सोचा कि जो तनहाई आने वाली है,

वो आँसुओं की घटा साथ लाने वाली है।

जब वो बरसेगी अकेले में, भला क्या होगा?

तन तो भीगेगा मगर मन सुलग रहा होगा!

वो आग कोई भी बारिश बुझा न पाएगी,

हर एक धार जलन और बढ़ा जाएगी।

इसी तरह के खयालों से जूझते दोनों,

एक-दूजे के तड़पने को बूझते दोनों,

फिर भी चुप हैं ये सोच के कि क्या कहें आखिर?

जब बिछड़ना है तो चुप- चाप विदाई लें फिर!

हाँ, मगर बेशुमार बतकही का मन भी है,

शोर करती हुई भीतर कोई धड़कन भी है!

इसी उधेड़बुन के साथ हर कदम रखते,

मुस्कुराते हुए आपस का हम भरम रखते।

काश! ये वक्त इसी मोड़ पर ठहर जाए,

एक ख्वाहिश कि उम्र बस यूँही गुज़र जाए।

कुछ हो ऐसा कि ज़रा जी बहले,

देर तक साथ हमारा रह ले।

हम अलग होने के बिल्कुल पहले,

धीमी बारिश में दूर तक टहले।

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