चोर घुस गए कैसे भीतर?
आओ, दरबानों से पूछें !
(१)
दस-दस पहरेदार दिए थे,
हाथों में हथियार दिए थे,
थी ड्यूटी दिन-रात बजानी,
चौबीस घंटों की निगरानी;
चूक हो गई क्यों ऎसी फिर?
चोर घुस गए कैसे आखिर?
सेंध लगाई गई कहाँ पर,
चलकर तहखानों से पूछें !
(२)
एक सिपाही बोला रोकर,
एक कहानी कहता हूँ, सर,
एक रात नज़रों से छुप के,
चोर घुसा एक चुपके-चुपके;
मेरे भाई ने पकड़ा था,
अपनी बाँहों में जकड़ा था;
सिसक उठा वह इतना कहकर –
और निगहबानों से पूछें !
(३)
उसके सुर में सुर लिपटाए,
और सिपाही कहने आए –
चोर पैरवीवाला था जी,
वो मालिक का साला था जी;
धुत्त नशे में आया वापस,
जुआ खेलकर लौटा था बस,
खूब लड़ा पकड़े जाने पर,
साथी मरदानों से पूछें !
(४)
शोर सुना तो मालिक आए,
औ’ साले को पिटता पाए,
लाल हो गए मालिक-मलकिन,
खो बैठे थे आपा उस छिन;
मेरे भाई को धर पीटा,
खूब लताड़ा, खूब घसीटा,
किया काम से उसको बाहर,
किन आँखों-कानों से पूछें ?
(५)
किया पुलिस के उसे हवाले,
पड़े ज़मानत के भी लाले,
तब से हमने सबक लिया है,
जाने किसकी पहुँच कहाँ है?
कोइ नहीं देगा शाबाशी,
हल्की-फुल्की करो तलाशी;
जो जाता, जब जाए भीतर,
हम क्यों मेहमानों से पूछें?
(६)
इस चक्कर में चोर घुस गए,
रात नहीं, थी भोर, घुस गए;
छोड़ रहे थे नया शगूफा,
बनते थे मालिक के फूफा;
‘फूफा जी से भिड़ने जाएं,
फिर मालिक के जूते खाएं?
फिर पिट जाएं, ड्यूटी देकर?’ -
बड़े खानदानों से पूछें !
(७)
जो गरीब ड्यूटी देता है,
बदले में रोज़ी लेता है;
रोज़ी को ईमान समझता,
ड्यूटी अपनी शान समझता;
उसे समझना बिना सियासत,
वेतन के संग देना इज्ज़त;
‘कर पाएंगे बड़े-बड़े दर?’ –
क्या बेईमानों से पूछें !!
--
आशुतोष द्विवेदी
(पुलवामा
हमले के बाद)
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