Friday, April 28, 2017

ग़ज़ल

मौसम है दगाबाज़, कभी सर्द, कभी गर्म
जैसे तेरा मिजाज़, कभी सर्द, कभी गर्म

तासीर आज तक तेरी पकड़ी नहीं गयी,
कभी खुश, कभी नाराज़, कभी सर्द, कभी गर्म

अपनों ने सुनाई भी तो कुछ रंज नहीं है,
ये प्यार की आवाज़, कभी सर्द, कभी गर्म

ये चाल, ये चलन, कि कभी रात, कभी, दिन,
ये नाज़, ये अंदाज़, कभी सर्द, कभी गर्म

साँसों के हैं सुर-ताल, कभी मंद, कभी, तेज़,
है धड़कनों का साज़, कभी सर्द, कभी गर्म

नव्ज़ों में लहू बन के दौड़ने लगा है इश्क़,
अब जो भी हो इलाज़, कभी सर्द, कभी गर्म


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