Friday, June 10, 2011

ग़ज़ल

वो यही सोच के बाज़ार में आई होगी |
आबरू बेंच के थोड़ी तो कमाई होगी |
उसने कपड़ों पे' बहुत खर्च किया होगा पर,
ऐसा फैशन है कि तन ढँक नहीं पायी होगी |
ये तो मालूम था सच को न सुना जायेगा,
पर ये अंदाज़ा नहीं था कि पिटाई होगी |
जैसे बन में रँगा सियार बना था राजा,
वैसे नेताओं ने सरकार बनाई होगी ?
कोई बड़ों से ये कह दे कि ज़रा कम बोलें,
इसी में देश के बच्चों की भलाई होगी |
खुशबुएँ ले के हवाएं उधर से आती हैं,
उस कली ने मेरी ग़ज़ल कोई गायी होगी |

Saturday, May 28, 2011

गीत

छन्द, रचकर जिन्हें हम मगन हो गए,
सब तुम्हारी कृपा से भजन हो गए |
(१)
उठ रही है अगुरु-गंध हर पंक्ति से,
यूँ सुवासित हुई चिर-प्रणय-साधना |
गीत में गुंजरित शंख की मुक्त-ध्वनि,
यूँ मुखर हो गयी मौन आराधना |
आज वेदान्त-वाचक अधर बन गए,
योग के दिव्य साक्षी नयन हो गए | 
(२)
बुद्धि के संशयों ने बड़े दुःख दिए,
चित्त की चपलता ने नचाया बहुत |
तामसिक देह ने सौ भुलावे रचे,
लक्ष्य से दूर हमको भगाया बहुत |
किन्तु करुणा तुम्हारी अपरिमित, अचल;
शून्य क्षण में सकल दुर्व्यसन हो गए |
(३)
वेदनाएं सभी सीढ़ियाँ बन गयीं,
द्वार तक जो तुम्हारे चढ़ाती रहीं |
और अवहेलनायें, मिलीं विश्व से,
पाठ तुमसे मिलन का पढ़ाती रहीं |
प्रेम-पारस छुआ प्राण ने जिस घड़ी,
अश्रु सारे हमारे, रतन हो गए |