पेश है ताज़ा ग़ज़ल, आप सभी मित्रों के लिए:-
आओ विकसित देश बनाएं कागज़ पर,
छल-छद्मों की गणित चलाएं कागज़ पर।
हम, तुम, वो, सब कागज़ के हैं शेर, मियाँ!
कस के चलो दहाड़ लगाएं कागज़ पर।
क्या सच है, क्या झूठ? हमारी कलम गढ़े,
ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं, कागज़ पर।
जो स्नातक में भी उत्तीर्ण न हो पाए,
आओ, उनको शोध कराएं कागज़ पर।
जो आँखों से अंतर्मन तक नीरस हैं,
उनने लिख मारी कविताएं, कागज़ पर।
आँखों-देखी को झुठलाएं कागज़ पर,
मनचाही तस्वीर सजाएं कागज़ पर।
- आशुतोष द्विवेदी