कुंदन की कांति काढ़ि काया करी कामिनी की,
कोमल, कुलीन, कल्पनामयी कुमारी की ।
कोई कहे केकी, कोई कोकिला, कमल कोई,
कोई कहे कामना कृतार्थ कामनारी की ।
कोई कहे काव्य, कोई कला का कलाप कहे,
कंठ-कंठ कूजित कीरति किलकारी की ।
कोटि-कोटि काम कृत-कल्प करें क्रोध किन्तु,
काट कहाँ कुटिल कटाक्ष की कटारी की !
-- आशुतोष द्विवेदी