बातें इस तरह भी खराब न हो जाएं कहीं,
ये जो आँसू हैं फिर शराब न हो जाएं कहीं !
गलतियाँ करते हो तो गिनतियाँ भी करते रहो,
बढ़ते-बढ़ते ये बेहिसाब न हो जाएं कहीं !
बड़ी जतन से हकीकत किये हैं जो लम्हे,
डर यही है कि फिर से ख्वाब न हो जाएं कहीं !
दिल में लहरें जो उठीं हैं उन्हें सँभाल भी लो,
मनचलेपन में ये सैलाब न हो जाएं कहीं !
ज़रा सी उलझनें जंजाल बन गईं अक्सर,
ये सितारे भी आफताब न हो जाएं कहीं !
वो मेरे दर्द की देहरी को लाँघना चाहे,
कोशिशें उसकी कामयाब न हो जाएं कहीं !
छोटे बच्चे हैं, इन्हें मज़हबी फितूर न दो,
बड़े होते ही ये कसाब न हो जाएं कहीं !
भागे फिरते हैं खुशबुओं के सताए हुए हम,
ये चंद शेर भी गुलाब न हो जाएं कहीं !
-- आशुतोष द्विवेदी